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💗सबसे प्यारा हॉस्टल हमारा💗

सबसे प्यारा हॉस्टल हमारा,

 कैसे तेरा गुणगान करूं,

 तू रायगढ़ की मिट्टी की बनी है,

 तुझको मैं सलाम करूं !

तू दूर नजर से होती है,

 फिर भी दिल धड़कता है,

ओ हॉस्टल की यादें, 

आज भी याद आता है!

हॉस्टल का पहला दिन था,

घर का याद आता था,

 शनिवार की डांट फटकार,

रातों की खिचड़ी,

 सुबह की गुड मॉर्निंग,

 रात का गुड नाइट,

  वह लम्हा वह यादें,

 पल पल याद आता था!

 हॉस्टल की गार्डन के रंग-बिरंगे 

पेड़- पौधे/फूल कितना सुहावना था,

यही खुशियों का आशियाना था,

सुबह शाम की प्रार्थना, पेपर पढ़ना,

 सभी मिलजुल कर साफ-सफाई करना,

 रैलियों मैं जाना,

आज भी याद आता है!

 माह के अंतिम दिन

 पढ़ाई छोड़ लेन-देन में बैठ जाते थे

किसी को अच्छा 

किसी को बुरा -भला कह जाते थे 

सीनियर जूनियर सभी 

 प्रेम भाव से रहते थे

 वेलकम फेयरवेल पार्टी को

 बड़ी धूमधाम से मनाते थे

 सबसे प्यारा हॉस्टल हमारा

 कैसे तेरा गुणगान करूं

 तू रायगढ़ की मिट्टी की बनी है

 तुझको मैं सलाम करूं

- Krishna chouhan

 
💗Hostel Life💗
वो दिन भी क्या दिन थे.... 
हमारे लिये तो वहां रात भी दिन थे 
हर अंतिम कमरे के पास डस्टबीन थे 
जूनियर हॉस्टल की देखरेख में.... 
और सीनियर पढ़ाई में लीन थे । 
याद आता है ! हॉस्टल के भी क्या दिन थे । 

पहले दिन का होस्टल में आना 
मानो खुद को कसौटी में बांधना । 
बैठक एक दिन का कर देता था आँखें गीली 
अगले दिन से बन जाते थे भीगी बिल्ली ।
हर बदमाश का सुधरना यहाँ मुनकिन था याद आता है ! हॉस्टल का भी क्या दिन था । 

कौन कहता है हॉस्टल में भोजन ढील ढाल होता है 
यहाँ तो सब्जी के साथ अरहर का दाल होता है 
वीकेंड में तो मानो कमाल होता है 
विशेष भोजन के लिए भरा हुआ हॉल होता है । 
उस दिन कुछ तीखा कुछ नमकीन होता है
याद आता है ! हॉस्टल का दिन भी क्या दिन होता है । 

दोस्तों के साथ जो हम कमरे में चिल्लाते थे 
तब सीनियर आकर हमें धमकाते थे । ॥ 
आ जाने दो शनिवार का रात ,
हम करेंगे उस समय तुमसे बात "
होकर शांत हम करते थे तैयारी
होती थी उस रात कार्यक्रम बड़ - भारी 
कार्यक्रम के बाद खिचड़ी के सब शौकीन थे 
याद आता है ! हॉस्टल के भी क्या दिन थे ....।।। 

                                              - Veeru Chauhan
 
💗गुजरे दिनों के नाम💗
यादों में रह गई ओ बातें , बीते  लम्हों की । 
याद पुरानी , समय की यह कहानी ।। 
जिसे सोच अब, आंखों में नम सी छा जाती है ।
गुड मॉर्निंग से गुड नाईट तक का सफर ,
जिंदगी का हम सफर सा हो गया था ।।
याद आती है,हॉस्टल के गुजरे हुए ओ दिन ...

शनी की ओ डांट फटकार , साथ खिचड़ी की वो स्वाद ।
बड़ा मजा आता था , किसी को जादा तो किसी को कम ।
क्या ग्रुप बना बैठ जाते थे , 
एक साथ न सीनियर न जूनियर भाई चारा खूब निभाते थे ।।
याद आती है,हॉस्टल के गुजरे हुए ओ दिन ...

जब माह अंतिम दिन से गुजर रहा होता था , 
पढ़ाई छोड़ सब लेन देन में बैठ जाते थे ।
कितनो को गुस्सा, कितनो को  अच्छा ,
भला बुरा कह जाते थे ।
सुबह का मिलना , 
मानो लगता कुछ हुआ ही नहीं सब एक मन हो जाते थे ।।
याद आती है,हॉस्टल के गुजरे हुए ओ दिन ...

क्या गजब की जिंदगी थी ,
जिसमे मिलना जुलना जबरन सीखा जाती थी ।
न चाहते हुए भी  दुश्मनो से, मुहब्बत करना सीखा जाती थी । ।
याद आती है,हॉस्टल के गुजरे हुए ओ दिन ...

सीनियर की ओ डांट , दूरदर्शी सा ओ प्यार ।
आज भरी महफिल में याद आ जाती है , 
जिन्होंने हमें सिखाया , रहना चलना , 
बड़ों से कैसे बाते करना जीवन में याद आ जाती हैं ।।
गुजरे दिनों के नाम ।।
 - Anil vijay
 
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